कुछ पहले पहले आज न दुनियां ठगी गई ,
सुमनों के सिर पर सदा धूल ही मली गई !
बाहें फ़ैला कर पुलिनों ने सरिता से माँगा आलिंगन ,
प्रिय ! आज नहीं कल-कल कहती वह चली गई !
श्री शिव मंगल सिंह सुमन
" श्री विष्णु षोडषनाम "
औषधे चिन्तये विष्णु , भोजने च जनार्दनम
शयने पद्म्नाभम च , विवाहे च प्रजापतिम
नारायणं तनुत्यागे, श्रीधरे प्रियसंगमे
दु:स्वप्ने समर: गोविंदम , संकटे मधुसुदनम
कानने नारसिंघम च, पावके जलशायिनम
जल मध्ये वराहं च ,पर्वते रघुनंदनम
गमने वामनं चैव , सर्व कार्येषु माधवं !
ब्रजेश शर्मा