फिर उठे नीले समंदर में ,
महकती खुशबुओं के ज्वार !
रंग उभरा कल्पनाओं में ,
घुल गया चंदन हवाओं में ,
मिल गयीं बेहोशियाँ आकर
होश की सारी दवाओं में ,
भावनाओं की उठी जयमाल के आगे ,
आज संयम सर झुकाने को हुआ लाचार !
छू लिया जो रेशमी पल ने ,
बिजलियाँ जल में लगीं जलने ,
प्रश्न सारे कर दिए झूठे
दो गुलाबों के लिखे हल ने ,
तितलियों ने आज मौसम के इशारे पर ,
फूल की हर पंखरी का कर दिया श्रंगार !
लड़खड़ाई सांस की सरगम ,
गुनगुनाकर गीतगोविन्दम,
झिलमिलाकर झील के जल में ,
और उजली हो गई पूनम !
रंग डाला फिर हठीले श्याम ने आकर,
राधिका का हर बहाना हो गया बेकार
डॉ.कीर्ति काळे
महकती खुशबुओं के ज्वार !
रंग उभरा कल्पनाओं में ,
घुल गया चंदन हवाओं में ,
मिल गयीं बेहोशियाँ आकर
होश की सारी दवाओं में ,
भावनाओं की उठी जयमाल के आगे ,
आज संयम सर झुकाने को हुआ लाचार !
छू लिया जो रेशमी पल ने ,
बिजलियाँ जल में लगीं जलने ,
प्रश्न सारे कर दिए झूठे
दो गुलाबों के लिखे हल ने ,
तितलियों ने आज मौसम के इशारे पर ,
फूल की हर पंखरी का कर दिया श्रंगार !
लड़खड़ाई सांस की सरगम ,
गुनगुनाकर गीतगोविन्दम,
झिलमिलाकर झील के जल में ,
और उजली हो गई पूनम !
रंग डाला फिर हठीले श्याम ने आकर,
राधिका का हर बहाना हो गया बेकार
डॉ.कीर्ति काळे









