ठोकर खाकर हमनेजैसे ही यंत्र को उठाया,
मस्तक में शूं-शूं की ध्वनि हुईकुछ घरघराया।
झटके से गरदन घुमाई,
पत्नी को देखाअब यंत्र सेपत्नी की आवाज़ आई-
मैं तो भर पाई!सड़क पर चलने तक कातरीक़ा नहीं आता,
कोई भी मैनरया सली़क़ा नहीं आता।
बीवी साथ हैयह तक भूल जाते हैं,
और भिखमंगे नदीदों की तरहचीज़ें उठाते हैं।....
इनसेइनसे तोवो पूना वालाइंजीनियर ही ठीक था,
जीप में बिठा के मुझे शॉपिंग कराताइस तरह राह चलतेठोकर तो न खाता।
हमने सोचा-यंत्र ख़तरनाक है!
और ये भी एक इत्तेफ़ाक़ हैकि हमको मिला है,
और मिलते हीपूना वाला गुल खिला है।
और भी देखते हैंक्या-क्या गुल खिलते हैं?
अब ज़रा यार-दोस्तों से मिलते हैं।
तो हमने एक दोस्त कादरवाज़ा खटखटायाद्वार खोला,
निकला, मुस्कुराया,दिमाग़ में होने लगी
आहटकुछ शूं-शूंकुछ घरघराहट।
यंत्र से आवाज़ आई-अकेला ही आया है,
अपनी छप्पनछुरी,गुलबदन कोनहीं लाया है।
प्रकट में बोला-ओहो!कमीज़ तो बड़ी फ़ैन्सी है!
और सब ठीक है?
मतलब, भाभीजी कैसी हैं?
हमने कहा-भा...भी....जीया छप्पनछुरी गुलबदन?
वो बोला-होश की दवा करो श्रीमन्क्या
अण्ट-शण्ट बकते हो,भाभीजी के लिएकैसे-कैसे शब्दों काप्रयोग करते हो?
हमने सोचा-कैसा नट रहा है,
अपनी सोची हुई बातों से हीहट रहा है।
सो फ़ैसला किया-अब से बस सुन लिया करेंगे,
कोई भी अच्छी या बुरीप्रतिक्रिया नहीं करेंगे।
लेकिन अनुभव हुए नए-नएएक आदर्शवादी दोस्त के घर गए।+
स्वयं नहीं निकलेवे आईं,
हाथ जोड़कर मुस्कुराईं-मस्तक में भयंकर पीड़ा
थीअभी-अभी सोए हैं।
यंत्र ने बताया-बिल्कुल नहीं सोए हैंन कहीं पीड़ा हो रही है,
कुछ अनन्य मित्रों के साथद्यूत-क्रीड़ा हो रही है।
अगले दिन कॉलिज
मेंबी०ए० फ़ाइनल की क्लास
मेंएक लड़की बैठी थीखिड़की के पास में।
लग रहा थाहमारा लैक्चर नहीं सुन रही
हैअपने मन मेंकुछ और-ही-औरगुन रही है।
तो यंत्र को ऑन करहमने जो देखा,
खिंच गई हृदय परहर्ष की रेखा।
यंत्र से आवाज़ आई-सरजी यों तो बहुत अच्छे हैं,
लंबे और होते तोकितने स्मार्ट होते!
एक सहपाठीजो कॉपी पर उसकाचित्र बना रहा था,
मन-ही-मन उसके साथपिकनिक मना रहा था।
हमने सोचा-फ़्रायड ने सारी बातेंठीक ही कही हैं,
कि इंसान की खोपड़ी मेंसैक्स के अलावा कुछ नहीं है।
कुछ बातें तोइतनी घिनौनी हैं,
जिन्हें बतलाने मेंभाषाएं बौनी हैं।
एक बार होटल मेंबेयरा
पांच रुपये बीस पैसेवापस लायापांच का नोट हमने उठाया,
बीस पैसे टिप में डालेयंत्र से आवाज़ आई-चले आते हैंमनहूस,
कंजड़ कहीं के साले,
टिप में पूरे आठ आने भी नहीं डाले।
हमने सोचा- ग़नीमत हैकुछ महाविशेषण और नहीं निकाले।
ख़ैर साहब!इस यंत्र ने बड़े-बड़े गुल खिलाए
हैंकभी ज़हर तो कभीअमृत के घूंट पिलाए हैं।-
वह जो लिपस्टिक और पाउडर मेंपुती हुई लड़की
हैहमें मालूम हैउसके घर में कितनी कड़की है!-
और वह जो पनवाड़ी हैयंत्र ने बता दियाकि
हमारे पान मेंउसकी बीवी की झूठी सुपारी है।
एक दिन कविसम्मेलन मंच पर भीअपना यंत्र लाए
थेहमें सब पता थाकौन-कौन कविक्या-क्या करके आए थे।
ऊपर से वाह-वाहदिल में कराहअगला हूट हो जाए पूरी चाह।
दिमाग़ों में आलोचनाओं का इज़ाफ़ा था,कुछ के सिरों में सिर्फसंयोजक का लिफ़ाफ़ा था।
ख़ैर साहब,इस यंत्र से हर तरह का भ्रम गया
मेरे काव्य-पाठ के दौरानकई कवि मित्रएक साथ सोच रहे थे-
अरे ये तो जम गया!
अशोक चक्रधर