कोई मौसम किसी खाने में रखिये,
बहारों को न वीराने में रखिये !
खुशी का रंग पैमाने में रखिये ,
तो फिर ग़म कौन से खाने में रखिये !
हमारा नाम आए या न आए ,
हमारी बात अफ़साने में रखिये !
हज़ारों दास्तानें सो रही हैं ,
क़दम आहिस्ता वीराने में रखिये ,
लकीरें पढ़ने वाला कब टलेगा ,
कहाँ तक हाथ दस्ताने में रखिये !
नशा "नज़मी" अचानक टूटता है,
बचा कर कुछ तो पैमाने में रखिये !
" अख्तर नज़मी "