Saturday, 22 March 2008

आने पर मेरे बिजली-सी कौंधी सिर्फ तुम्हारे दृग
मेंलगता है जाने पर मेरे सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे !
मैं आया तो चारण-जैसागाने लगा तुम्हारा आंगन;
हंसता द्वार, चहकती ड्योढ़ीतुम चुपचाप खड़े किस कारण ?
मुझको द्वारे तक पहुंचाने सब तो आये, तुम्हीं न आए,
लगता है एकाकी पथ पर मेरे साथ तुम्हीं होओगे !
मौन तुम्हारा प्रश्न चिन्ह है, पूछ रहे शायद कैसा हूं
कुछ कुछ बादल के जैसा हूं; मेरा गीत सुन सब जागे,
तुमको जैसे नींद आ गई,
लगता मौन प्रतीक्षा में तुम सारी रात नहीं सोओगे !
तुमने मुझे अदेखा कर केसंबंधों की बात खोल दी;
सुख के सूरज की आंखों में काली काली रात घोल दी;
कल को गर मेरे आंसू की मंदिर में पड़ गई ज़रूरत
लगता है आंचल को अपने सबसे अधिक तुम ही धोओगे !
परिचय से पहले ही, बोलो, उलझे किस ताने बाने में ?
तुम शायद पथ देख रहे थे, मुझको देर हुई आने में;
जगभर ने आशीष पठाए, तुमने कोई शब्द न भेजा,
लगता है तुम मन की बगिया में गीतों का बिरवा बोओगे!
पं. रामावतार त्यागी