Wednesday, 19 December 2007

मुक्तक


कुछ पहले पहले आज न दुनियां ठगी गई ,


सुमनों के सिर पर सदा धूल ही मली गई !


बाहें फ़ैला कर पुलिनों ने सरिता से माँगा आलिंगन ,


प्रिय ! आज नहीं कल-कल कहती वह चली गई !


श्री शिव मंगल सिंह सुमन

मुक्तक

मरहम से क्या होगा ये फोड़ा नासूरी है ,
अब तो इसकी चीर-फाड़ करना मज़बूरी है !
अब तुम कहो !कि ये तो हिंसा है !
होगी ! लेकिन बहुत ज़रूरी है !
श्री मुकुट बिहारी सरोज

बड़ी कविता कि वह जो विश्व को सुन्दर बनाती है ,
बड़ा वह ज्ञान जिससे व्यर्थ की चिंता नहीं होती !
बड़ा वह आदमी जो ज़िन्दगी भर काम करता है ,
बड़ी वह रूह जो रोये बिना तन से निकलती है !
राष्ट्र कवि श्री दिनकर जी

ग़ज़ल

हमें मालूम है मय इसमे है बस नाम को यारो ,
दिया साकी ने तो सर से लगाया जाम को यारो !

यहाँ जिस काम को आये हैं कर लें लौट जायेंगे ,
हमें आती है घर की याद बेहद शाम को यारो !

किसी की गोद में थक कर नशे की नींद में सोयें ,
फ़रिश्ते तक तरसते हैं इसी आराम को यारो !

मुनासिब है सज़ा दो सख्त से भी सख्त ज़ालिम को ,
मगर खुद याद रखना ज़ुल्म के अंजाम को यारो !

मोहब्बत के अलावा और भी कोई इबादत है ?
ज़ेहन से तुम मिटादो इस खयाले खाम को यारो !

* श्री उदय प्रताप सिंह

Tuesday, 11 December 2007


दोहे,गीत,ग़ज़ल,चौपाई ,मेघ ,मल्हार न होते तो ,
दुनियां सूनी सूनी होती हम फ़नकार न होते तो !
स्व.अग्निवेश शुक्ल
चंद शेर ........
मैं अपने घर में अकेला कमाने वाला हूँ ,
मुझे तो सांस भी आहिस्तगी से लेना है !
वो अपने खून से लिखने लगा है ख़त मुझको ,
अब इस मज़ाक को संजीदगी से लेना है !
कहो वो अपनी सखावत को अपने पास रखे ,
दिया है जिसने हमेशा उसी से लेना है !
सखावत =दानशीलता