Friday, 26 October 2007

!! मुक्तक !!
अक़ल्मंदी हमारे नाम के पहले नहीं जुड़ती
मगर भोले नहीं इतने कि जितने आम दिखते हैं ,
हमें हस्ताक्षर करना न आया चैक पर माना,
मगर दिल पर बड़ी कारीगरी से नाम लिखते हैं !
पंडित रामावतार त्यागी

Saturday, 6 October 2007

प्रिय वरदान ,
हमेशा अपने सपनों को अपनी स्मृति से बड़ा बनाओ ,क्योंकि स्मृति अतीत है और सपने तुम्हारा भविष्य !
जितना बड़ा तुम्हारा सपना होगा , उतना ही बड़ा तुम्हारा भविष्य होगा !
और याद रखना सपना वो नहीं है जो तुम सोते हुये देखते हो , वरन सच्चा सपना वो है जो तुम्हें सोने नहीं देता है ।
हमें पता है की तुम सब वहां बहुत मेहनत से अपनी पढ़ाई कर रहे हो ।
जब भी थकने लगो तो अपने सपने को याद कर लो , और ये भी कि ये तुम्हारा ही चुनाव है । बस केवल ये शानदार सात सौ तीस दिन ही तुम्हारे जीवन की दिशा तय करने वाले हैं । इनका भरपूर आनंद लेते हुये उपयोग करना है ।
हमें तुम्हारे सभी मित्रों से मिलकर बहुत अच्छा लगा । तुम सभी का आपसी तालमेल
प्रेममय है । इसे सदा सहेज कर रखना , बहुत बड़ी संपदा है ये ।
बाबा और चाचाजी को वहां के फोटो देखकर बहुत आनंद आया । अपने लाढले को सुरम्य वातावरण वाले कॉलेज में पढते हुये देखकर यहाँ सभी को गौरव की अनुभूति हुई
है ।
खूब मन लगा कर पढो , तुम सब की शानदार सफ़लता के प्रति हम आश्वस्त हैं ।
अनंत स्नेहाशिष सहित

पापाजी सपरिवार
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय "


" श्री विष्णु षोडषनाम "

औषधे चिन्तये विष्णु , भोजने च जनार्दनम


शयने पद्म्नाभम च , विवाहे च प्रजापतिम

युद्धे चक्रधरम देवं , प्रवासे च त्रिविक्रमं


नारायणं तनुत्यागे, श्रीधरे प्रियसंगमे

दु:स्वप्ने समर: गोविंदम , संकटे मधुसुदनम

कानने नारसिंघम च, पावके जलशायिनम

जल मध्ये वराहं च ,पर्वते रघुनंदनम

गमने वामनं चैव , सर्व कार्येषु माधवं !


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