Friday, 31 August 2007

VARDAAN

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DEVI MAA DURGA

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SAI BABA

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vardaan

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जिसे दुश्मन समझता हूँ ,वही अपना निकलता है !
हर एक पत्थर से मेरे सर का ,कुछ रिश्ता निकलता है !!
डरा धमका के तुम हमसे वफ़ा करने को कहते हो !
कहीँ तलवार से भी पाँव का कांटा निकलता है !!
जरा सा झुटपुटा होते ही छूप जाता है सूरज भी !
मगर एक चांद है जो शब् में भी तनहा निकलता है !!
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इस सदन में, मैं अकेला ही दिया हूँ ,
मत बुझाओ जब मिलेगी रौशनी मुझ से मिलेगी


जी रहे हो जिस कला का नाम लेकर ,
कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है ,
सभ्यता कि जिस अटारी पर खड़े हो ,
वो हमीं बदनाम लोगों ने रची है .