Sunday, 27 April 2008

बतियाँ कहिबे खों रह जानें ,
ऐसे हते फलानें !
जा काया पे गरब न कीजे ,
माटी मोल बिकानें !
महल, अटरियाँ, माल, खजाना ,
यहीं पडों रह जाने !
" इसुर " माया के चक्कर में ,
काहे फिरत भुलानें !
" ईसुरी "


"जिनके महलों में हजारों रंग के फानूस थे ,
झाड़ उनकी कब्र पर बाकी निशाँ कुछ भी नहीं "